विना कोष का राजा और बिना कोष का विद्वान निरर्थक है । कविता, वक्तृता एवं निबन्ध लिखनेवालों के लिए कोष अत्यन्त आवश्यक वस्तु है । भारतवर्ष मे वैदिककाल से लेकर आज तक अनेक कोषग्रन्थ रचे गये । यदि इसका अभाव होता तो भिन्न भिन्न काल मे प्रचलित भिन्न-भिन्न शब्दो का भिन्न-भिन्न अर्थ मालूम करना दुष्कर कार्य होता । शब्दों का लिङ्ग ज्ञान करना व्याकरण के साथ कोष का भी कार्य है। पर्यायवाची शब्दों का ज्ञान और एक शब्द के अनेक अर्थ कोष की कृपा से विदित होते हैं । अतः स्पष्ट है कि संस्कृत साहित्य के गहन वन में प्रविष्ट होने के लिए कोषरूपी वनपथ प्रदर्शक की नितान्त आवश्यकता है ।
Pages | 431 |
Files Size | 18.00MB |
Auther | Amara singh |
Categories | Sanskrit Kosha |
Language | Sanskrit Hindi |
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