पुरुष सूक्त एक प्राचीन वेदीय मन्त्र है जो ऋग्वेद में पाया जाता है। यह वेदीय सूक्त प्राचीन भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और पुरुष की महिमा, शक्ति और महत्त्व को व्यक्त करता है। पुरुष सूक्त का महत्व निम्नलिखित कारणों से होता है।
१. पुरुष सूक्त में मनुष्य को ब्रह्मा के साथ सम्बद्ध माना जाता है। इसके अनुसार, मनुष्य ब्रह्मा के अंश से बना हुआ है और वह सम्पूर्ण ब्रह्मा का प्रतिनिधित्व करता है। यह सूक्त मनुष्य की महत्ता और उसके स्थान को दर्शाता है।
२. पुरुष सूक्त मनुष्य के एकत्व को प्रकट करता है। इसके अनुसार, सभी मनुष्य एक पुरुष में एकत्रित होते हैं और वे सभी सामान अवस्था में समान होते हैं। यह मानवीय भावनाओं को संबोधित करता है और जाति, वर्ण और धर्म के अनुसार भेदभाव का खंडन करता है।
३. पुरुष सूक्त में पुरुष के विभिन्न अंगों की उत्पत्ति और उनका महत्व वर्णित है। इसमें उनकी भूमिका, शक्ति और समर्पण का वर्णन है। यह सूक्त मनुष्य के विभिन्न पहलुओं को जागृत करता है और उसके पूर्णता और प्रगाढ़ता को व्यक्त करता है।
४. पुरुष सूक्त मानवीय एवं दिव्य सम्बन्धों का संगम दर्शाता है। यह उन्हें ब्रह्मा की प्रकृति और देवताओं के साथ सम्बंधित बताता है। इसके माध्यम से मनुष्य को अपनी अस्तित्व की अद्भुतता और व्यापकता का अनुभव होता है।
पुरुष सूक्त भारतीय धार्मिक और आध्यात्मिक अध्ययन में एक महत्वपूर्ण सूक्त माना जाता है। यह सूक्त मनुष्य के असीम शक्ति और प्रगाढ़ता को प्रकट करता है और उसे अपने मूल स्वरूप के साथ जोड़ने का संकेत करता है। इसके माध्यम से मनुष्य अपने स्वभाव की समझ, स्वाभिमान और आत्मविश्वास को विकसित करता है।
Pages | 2 |
Files Size | 5.00MB |
Auther/Publisher | Shukla Yajurveda |
Categories | Sooktam |
Language | Vaidik Sansktit |
Source link | Hare |