आशुतोष भगवान् सदाशिवकी उपासनामें रुद्राष्टाध्यायीका विशेष माहात्म्य है। शिवपुराणमें सनकादि ऋषियोंके प्रश्न करनेपर स्वयं शिवजीने रुद्राष्टाध्यायीके मन्त्रोंद्वारा अभिषेकका माहात्म्य बतलाते हुए कहा है कि मन, कर्म तथा वाणीसे परम पवित्र तथा सभी प्रकारकी आसक्तियोंसे रहित होकर भगवान् शूलपाणिकी प्रसन्नताके लिये रुद्राभिषेक करना चाहिये। इससे वह भगवान् शिवकी कृपासे सभी कामनाओंको प्राप्त करता है और अन्तमें परम गतिको प्राप्त होता है। रुद्राष्टाध्यायीद्वारा रुद्राभिषेकसे मनुष्योंकी कुलपरम्पराको भी आनन्दकी प्राप्ति होती है ।
मनसा कर्मणा वाचा शुचिः संगविवर्जितः ।
कुर्याद् रुद्राभिषेकं च प्रीतये शूलपाणिन: ॥
सर्वान् कामानवाप्नोति लभते परमां गतिम् ।
नन्दते च कुलं पुंसां श्रीमच्छम्भुप्रसादतः ॥
वायुपुराणमें आया है कि रुद्राष्टाध्यायीके नमक (पञ्चम अध्याय) और चमक (अष्टम अध्याय) तथा पुरुषसूक्तका प्रतिदिन तीन बार जप (पाठ) करनेसे मनुष्य ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। जो नमक, चमक, होतृमन्त्रों और पुरुषसूक्तका सर्वदा जप करता है, वह उसी प्रकार महादेवजीमें प्रवेश करता है, जिस प्रकार घरका स्वामी अपने घरमें प्रवेश करता है। जो मनुष्य अपने शरीरमें भस्म लगाकर, भस्ममें शयनकर और जितेन्द्रिय होकर निरन्तर रुद्राध्यायका पाठ करता है, वह परा मुक्तिको प्राप्त करता है । जो रोगी और पापी जितेन्द्रिय होकर रुद्राध्यायका पाठ करता है, वह रोग और पापसे मुक्त होकर अद्वितीय सुख प्राप्त करता है- नमकं चमकं चैव पौरुषं सूक्तमेव च । नित्यं त्रयं प्रयुञ्जानो ब्रह्मलोके महीयते ।
Pages | 229 |
Files Size | 12,7MB |
Auther/Publisher | Gita Press |
Categories | Rudra |
Language | Hindi, Sanskrit |
Source link | Hare |